Saturday, September 25, 2010

बेटी हो तेरे घर

मैं देहरादून में रहता हूँ और मेरे बच्चे फरीदाबाद. नौकरी का सवाल है साहब. आज सुबह मेरी १२ साल की बेटी दीक्षा का फोन आया, पापा आज क्या है?" पता नहीं. डॉटरस डे बेटी ने बताया. मैंने कोग्रेचुलेचुलशॉन दी और वादा किया की फरीदाबाद आऊंगा तो गिफ्ट दूंगा. मुझे अपना ये व्यंग्य याद आया. इसे अपनी बेटी को समर्पित कर रहा हूँ. अभी वह इसका अर्थ शायद न समझ पाए. पर आप जरूर समझेंगे. उम्मीद है इसे सिर्फ एक व्यंग्य के रूप में नहीं लेंगे.



बात उन दिनों की है जब अंधेर नगरी के लोग इस बात को लेकर बेहद परेशान रहने लगे थे कि उनके यहां लड़कियों की संख्या कम होती जा रही है। दरअसल यह परेशानी अंधेर नगरी के लोग अचानक किसी दैवीय शक्ति के कारण नहीं होने लगे थे, लेकिन कई सालों से कभी लड़कियों को पैदा होते ही और कभी कुछ बड़ी होने के बाद मार डालने के कारण इस नगरी के लोगों के लड़कों की शादियां करना मुश्किल होने लगा था।
इस बात को लेकर अंधेर नगरी के अफसर लोग सार्वजनिक रूप से लगातार चर्चाएं करते थे। दरअसल सरकार ने कह रखा था कि अब उनके यहां एक भी लड़की नहीं मरनी चाहिए और मरी तो ठीक नहीं होगा। ऐसे में ये अफसर लोग सभी से कहते थे कि वे बेटियों को बेटों से कम न समझें। कुछ अफसर ने लड़कियों और नारियों की प्रसंशा करने के लिए पुरानी कविताओं की कुछ लाइनें याद कर ली थीं, वे जहां भी जाते उन कविताओं की लाइनों को जरूर सुनाते। लोग उसके भाषण सुनकर आइंदा लड़कियां न मारने का संकल्प तो लेते या नहीं यह पता नहीं चलता, लेकिन वे कविता की लाइनें जिस जोश और खरोश के साथ सुनाते उससे लोग तालियां जरूर बजाते थे। दरअसल लोग खुद इतने समझदार नहीं थे कि उनकी कविता सुनकर तालियां बजाते, बल्कि जब भी वे कविता सुनाते, मंच पर उनके साथ खड़े उनके एक खास सिपहसालार दोनों हाथ अपने सिर के ठीक ऊपर लेजाकर ताली बजाते। इससे लोग समझ जाते है कि अब उन्हें ताली बजानी है और वे ताली बजा देते।
लड़कियां की संख्या कम होने की बात पर चिन्ता जताने की नौ·री करने वाले इन अफसर जी के पास उन्हीं के महकमे का एक ऐसा कर्मचारी था, जो चिन्ता जताने में उनकी मदद करता था। जब भी उन्हें इस बात पर सार्वजनिक रूप से चिन्ता जतानी होती, यह कर्मचारी भी खूब चिन्ता जताता और कई बार तो, बल्कि हर बार ही ऐसा होता कि वह व्यक्ति लड़कियां कम होने की बात पर चिन्ता जताते जताते सार्वजनिक रूप से रो पड़ता। लोग उससे खूब प्रभावित होते, पर पता नहीं क्यूँ उसके रोने के बावजूद भी लोग लड़कियां को न मारने का फैसला नहीं करते। क्योंकि वह अब तक इतनी बार रो चुका है की यदि सचमुच उसके रोने का असर हो रहा होता तो अब तक लड़कियां की संख्या काफी बढ़ जाती।
इस अफसर और रोने वाले उसके सहयोगी की खासियत यह थी कि वे नौकरी को नौकरी की तरह ही करते थे। जैसा कि कई लोग करते हैं. वे नौकरी को निजी जीवन से अलग रखते थे। उन्हें लड़कियां कम होने पर चिन्ता करने की नौकरी करनी थी तो वे करते थे, लेकिन निजी जीवन को इससे अलग रखते थे। यदि उनमें से किसी की पत्नी गर्भवती हो जाती तो वे चुपचाप उसे एक मशीन के पास ले जाते, वह मशीन बता देती कि उनकी पत्नी के पेट में लड़का है या लड़की। यदि लड़का होता तो वे अपनी पत्नी को घी पिलाते और खाने के लिए सूखे मेवे देते और यदि लड़की होती तो अपनी पत्नी को कसाइन के पास ले जाते। वह बेरहमी से उसके पेट में चाकू आदि घुसाकर उस लड़की के टुकड़े-टुकड़े कर देती।
अफसर और उसके आदमियों द्वारा लड़कियां कम होने पर लगातार चिन्ता जताने के बाद भी जब कोई फायदा नहीं हुआ और बड़े हाकिमों ने देखा कि इस पर पैसा तो खूब खर्च हो रहा है, लेकिन फायदा कुछ नहीं है तो उन्होंने एक कानून बनाया। इस कानून में यह व्यवस्था कर दी गई कि जो ऐसा करेगा, यानी कि पेट में पल रही बच्चियों को मरवाएगा, उसे जेल जाना पड़ेगा। लड़की की हत्या कराने वाले मां-बाप, पेट में लड़का है या लड़की, ऐसा बताने वाली मशीन और पेट के भीतर चाकू घुसाकर वहां पल रही बेटी को काटने वाली कसाइन के लिए सजा का प्रावधान रखा गया। लड़का या लड़की बताने वाली मशीन को भी बंद करने लिए कहा गया।
तब अंधेर नगरी में ऐसा हुआ कि जिन लोगों ने ऐसा कानून बनाया या बनवाया था तो उनमें से कुछ की पत्नियां एक बार फिर गर्भवती हो गईं। वे वैसे तो बेहद दयालु किस्म के लोग थे, और जैसी कि उनकी नौकरी थी, वे लड़कियां कम होने के मामले में लगातार चिन्ता जताते थे और लड़कियों की संख्या कैसे बढ़े इस बात पर लगातार विचार करते रहते थे, लेकिन उनके घर में बेटी हो, यह वे किसी भी रूप में बरदाश्त नहीं कर सकते थे। उनका मानना था कि बेटी दूसरे के घर में और बेटा अपने घर में पैदा होना चाहिए, ताकि बेटे की शादी के मामले में कोई दिक्कत न हो, लड़की आसानी से मिल जाए। अब एक बार फिर पत्नी गर्भवती हो गईं तो उनके सामने समस्या आई कि अब क्या हो। वे चुपचाप लड़का या लड़की बताने वाली मशीन के पास गए, जो पिछले कुछ समय से बंद पड़ी हुई थी, और उसके कान में कुछ फुसफुसाए। इसके बाद वह मशीन एक अंधेरे कमरे में चली गई। वे अपनी पत्नी को भी उसी अंधेरे कमरे में ले गए, मशीन से उनके कान में बता किया कि पेट में क्या है।
अब उनके सामने समस्या यह थी कि कसाइन को वे पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि उसने किसी मां के पेट में बच्ची की हत्या की तो उसे जेल जाना पड़ेगा, सो इस समस्या से निपटने के लिए वे कसाइन के पास गए और उसके कान में कुछ फुसफुसाए. उस दिन से कसाइन ने शहर के एक ऐसे इलाके में अपनी दुकान खोल दी जहां बातें इधर की उधर करने वाले, जिन्हें उस जमाने में मीडिया वाले कहा जाता था, न पहुंच सकें। उसके बाद वे अपनी पत्नी को कसाइन की उस दुकान पर ले गए और उसने फिर वही किया जो पहले किया था, लेकिन इस बार यह बात किसी को पता नहीं चली।
कुछ दिन बाद सभी लोगों को अंधेरे कमरे वाली बात पता चल गई। देखते ही देखते वे सभी लोग जो थे तो बहुत ही दयालु, लेकिन वे नहीं चाहते थे कि उनके घर में बेटी पैदा हो वे चाहते थे कि बेटी तो हमेशा दूसरे के घर में ही होनी चाहिए, ताकि उनके बेटे की शादी आसानी से हो जाए। इसलिए जब भी उनकी पत्नियां गर्भवती होतीं, वे अंधेरे कमरे में लगी मशीन के पास ले जाते उसे मोटा पैसा देते, मशीन कान में बता देती। फिर वे अपनी पत्नी को शहर के उस दूर के इलाके में उस कसाइन की दुकान पर ले जाते, मोटा पैसा देते और वह फिर वही करती जो पहले कई बार कर चुकी होती थी। वह मशीन अब भी अंधेरे कमरे में है, शहर के उस इलाके में अब भी ·साइन की दुकान चल रही है और लड़कियों की संख्या अब भी कम होती जा रही है। अंधेर नगरी में अफसर अब भी लड़कियां कम होने पर चिन्ता जता रहा हैं। उसने अब कई नई कविताएं याद कर ली हैं. उनका सहयोगी अब और जोर-जोर से रोने लगा है।

No comments:

Post a Comment

Followers

About Me

My photo
बसुकेदार रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड, India
रुद्रप्रयाग जिला के बसुकेदार गाँव में श्री जनानन्द भट्ट और श्रीमती शांता देवी के घर पैदा हुआ। पला-बढ़ा; पढ़ा-लिखा और २४साल के अध्धयन व् अनुभव को लेकर दिल्ली आ गया। और दिल्ली से फरीदाबाद। पिछले १६ साल से इसी शहर में हूँ। यानी की जवानी का सबसे बेशकीमती समय इस शहर को समर्पित कर दिया, लेकिन ख़ुद पत्थर के इस शहर से मुझे कुछ नही मिला.