
हे लोगों को छप्पर फाड़कर देने वाले! हे अदनान सामी को लिफ्ट करवाकर बंगला मोटर कार दिलाने वाले! हे मेरे साथ काम करने वालों को पता नहीं कहां से खूब सारा पैसा दिलाने वाले! आखिर इस बार भी तू मुझे धोखा दे गया। मुझे उम्मीद थी कि इस बार तू जरूर मेरे ही घर आएगा, लेकिन तूने ऐसा नहीं किया। इस बार अपने लिए तूने किसी दूसरे शहर के एक भाई का टमाटर चुना। सुना है कि उस टमाटर की चर्चाएं खूब जोर-शोर से हैं। शहर भर के और दूसरे शहरों से भी लोग वहां जाकर भेंट उपहार चढ़ा रहे हैं। वह भाई जिसका वह टमाटर था, ज्यादा नहीं तो थोड़ा बहुत तो अमीर हो गया समझ लो। कुछ नहीं तो थोड़ा-बहुत पुराना कर्जा तो उतार ही लेगा।
दरअसल मैं भी कई दिनों से तेरे आने की प्रतीक्षा कर रहा हूं। आज तक मैं ऐसे कई लोगों को देख चुका हैं, जिसे एक कहावत के अनुसार तूने फर्श से अर्श पर पहुंचा दिया। मेरे ऑफिस में ही देख, वो वाला मेरा सहयोगी, तू अच्छी तरह जानता है क्या है उसकी योग्यता, तनख्वाह भी मेरे से बहुत कम पाता है, पर उसके ठाठ तो देख, उसके पास बाइक है, कार है, घर में एयरकंडीशनर है, कभी बटुआ खोलता है तो पांच-पांच सौ के नोट जीभ बाहर निकाले हांफते नजर आते हैं। और मेरा बटुआ तो देखा है न तूने, उसमें में बीस का नोट जिस दिन हो उस दिन मैं खुद को अमीरों की गिनती में शुमार करने लगाता हूं। इसके अलावा मेरे बटुए में सेलरी अकाउंट का एक एटीएम कार्ड है, लेकिन उसका कोई फायदा नहीं, क्योंकि अकाउंट के सारे पैसे तो दस से पहले ही खत्म हो जाते हैं।
मैंने सुना था कि तू सबका ध्यान रखता है। आसपास के लोगों को इस तरह अमीर होता देख मुझे पूरा विश्वास था कि तू मेरा भी ध्यान रखेगा। जब से तूने लोगों के घरों में फलों और सब्जियों में प्रकट होना शुरू किया है, तब से मैं भी लगातार सब्जियां खरीद रहा हूं। तेरे प्रकट होने के पसंदीदा फल व सब्जी जैसे टमाटम, पपीता और सेब मैं नियम से खरीद रहा हूं। जेब की सख्त कड़की के बावजूद कोई न कोई जुगाड़ करके सब्जी और कभी-कभी फल खरीद लेता हूं, सिर्फ इस उम्मीद के साथ कि किसी न किसी दिन किसी फल या किसी सब्जी में तू जरूर प्रकट होगा और तब मैं अगला पिछला सारा चुकता कर डालूंगा।
लेकिन तू आज तक नहीं आया। आज सवेरे अखबार की उस खबर ने तो मुझे अंदर से तोड़कर रख दिया है, जिसमें किसी और शहर में एक भाई के घर टमाटर में तेरे प्रकट होने की सूचना दी गई है। आखिर तू मुझे कब तक इस तरह से नजरअंदाज करता रहेगा। कब तक तू इसी तरह मुझे सताता रहेगा। मैं जानता हूं कि तू जानबूझ कर मेरे साथ इस तरह के खेल खेल रहा है। उस दिन जब तेरी मूर्तियां लोगों का दूध गटकने में लगी हुईं थीं, लोग अपने बच्चों के हिस्से का दूध तेरी मूर्तियों को पिला रहे थे, शहर में दूध की कीमतें दुगुनी हो गई थीं, बच्चे बिना दूध के बिलबिला रहे थे लेकिन तू था कि लोगों का दूध बिना डकार मारे पीता जा रहा था। याद है कि मैं भी किसी तरह से एक लोटा दूध का जुगाड़ करके मंदिर पहुंचा था, लाख प्रयास के बाद भी तेरी मूर्ति ने मेरे हाथ से दूध नहीं पिया। मैंने खूब कोशिश की, पर नहीं। शर्म के मारे मुझे वहां मौजूद लोगों के सामने झूठी घोषणा करनी पड़ी कि मूर्ति ने मेरा वाला दूध भी पी लिया है।
और उस दिन, जब मेरे पड़ोस के एक घर में रखी तेरी तस्वीर में आशीर्वाद की मुद्रा में उठी हथेली से बभूति गिरने लगी थी। देखते ही देखते पड़ोसी के घर में भक्तों का तांता लग गया था। लोग अंदर जाते और तेरी हथेली से गिरी हुई उस बभूति का टीका माथे पर लगाकर बाहर लौट आते। थोड़ा सा पुण्य, सच पूछो तो मैं जब भी कोई पुण्य कार्य करने की सोचता हूं, तो अंदर से सागर पार होने या फिर मोक्ष की कोई लालस नहीं होती बस किसी पुण्य से थोड़ा पैसा आ जाए और लाला का पिछला दो महीने का हिसाब चुकता कर दूं, यही मेरी लालसा रहती है। तो इसी लालसा को लिए हुए मैं भी अपने उस पड़ोसी के घर गया था। हालांकि वह पड़ोसी बड़े खडूस किस्म का इंसान था, हम जैसों से बात करना तो वह अपनी शान के खिलाफ समझता था। स्थिति की नजाकत को भांपते हुए मैंने भी उससे पिछले दो-तीन साल से कोई बात नहीं की थी। लेकिन आज वह वैसा खडूस नहीं लग रहा था। मैं गेट पर पहुंचा तो उसने स्वागत किया और सीधे तेरी उस तस्वीर तक ले गया, जिसकी हथेली से बभूति गिर रही थी। पड़ोसी भेंट सामने रखे पात्र में डालने और हथेली को गौर से देखते रहने की हिदायत देकर बाहर चला गया। उस दिन भी तूने मेरे साथ धोखा किया। काफी देर तक मैं वहां बैठा रहा, पर मजाल क्या कि तेरी तस्वीर ने एक तिनका भी बभूति का टपकाया हो। अलबत्ता भेंट जो देनी पड़ी वह नुकसान अलग करवा दिया। लेकिन बाहर आने से पहले तस्वीर के पास जल रही अगरबत्ती की राख मुझे माथे पर लगानी पड़ी, ऐसा नहीं करता तो तेरे भक्त मुझे पापी करार दे देते।
चल कोई बात नहीं, इतने दिन कड़की में काटे, कुछ दिन और सही, लेकिन अबकी बार ऐसा मत करना, अब जरूर मेरे घर में आना। और हां, कड़की कुछ ज्यादा चल रही है यार। लगातार कलम घिसाई के बाद भी इतना नहीं मिलता कि आटा और नमक के बाद सब्जी और फल भी खरीद लू। हां इन दिनों अमरूद काफी सस्ता चल रहा है। मुझे लगता है कि दो तीन अमरूद रोज खरीद ही लूंगा। इसलिए तू जिस भी दिन मेरे घर आए अमरूद में ही आना। पर देर न लगाना, इस अमरूद का भी क्या भरोसा, पता नहीं कब महंगा हो जाए।
अब मैंने सब कुछ तेरे ऊपर छोड़ दिया है। मैं जितना कर सकता था, कर लिया। खूब मेहनत की। पर क्या मिला? जितना कमा पाया, वह इतना कम है कि बताते हुए शर्म आती है और जिस रकम को बताते हुए शर्म आए उसमें बच्चों को कैसे पाला जा रहा है, इसे तू अच्छी तरह से समझ सकता है। पर पता नहीं क्यों तू मेरी प्रोब्लम समझने के लिए ही तैयार नहीं है। यह आखिरी मौका है या तो मेरे घर में अमरूद में आ या फिर मुझे में उसी तरह लिफ्ट करवा दे जैस अदनाम सामी को किया था, या फिर मुझे भी मेरे उस मूर्ख सहयोगी की तरह गाड़ी, मकान और बटुए में पांच-पांच सौ के नोट दिला दे, यदि अब भी तूने ऐसा नहीं किया तो याद रखना एक और व्यंग्य लिख मारूंगा। फिर न बोलना क्यों लिख दिया।