देहरादून के एक स्कूल के दो बच्चों आठवीं कक्षा की पारुल और 11वीं के विक्की ने रेल से कटकर आत्महत्या कर ली। इसे पुलिस प्रेम प्रसंग को लेकर आत्महत्या का मामला मान रही है। समाचार पत्रों के पाठक भी शायद यही मान रहे हों, लेकिन क्या वास्तव में दोनों को प्रेम के बारे में इतनी समझ होगी कि साथ जीने और साथ मरने का इरादा लेकर वे ट्रेन के सामने कूद गये? शायद नहीं। इस उम्र के बच्चों में विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षण हो सकता है, लेकिन एक दूसरे के लिए जान दे देने तक की स्थिति तक वे भावुक नहीं हो सकते।
दरअसल इन दो बच्चों की जान उनके स्कूल ने ले ली। समाचार कहता है कि दोनों के माता-पिता को स्कूल में बुलाया गया था, स्कूल में उनसे क्या कहा गया, यह समाचार में नहीं कहा गया है। दोनों बच्चों को उनके मां-बाप के साथ घर भेज दिया गया। शाम को दोनों बच्चे घर से गायब हो गये और रात को पटरी पर दोनों के क्षत-विक्षत शव मिले। इससे साफ हो जाता है कि दोनों बच्चों ने प्रेम में डूब कर आत्महत्या नहीं की, बल्कि मां-बाप को स्कूल में बुला लिए जाने के कारण पैदा हुए अपराधबोध के चलते ऐसा भयानक कदम उठाया।
आखिर उन दो मासूमों ने ऐसा क्या अपराध किया कि उनके माता-पिता को स्कूल में बुला लिया गया। इतना ही किया होगा कि वे स्कूल में एक-दूसरे से बात कर लेते होंगे, इससे ज्यादा वे बच्चे क्या करते होंगे। साफ है कि स्कूल के शिक्षक और कर्ताधर्ताओं को एक लड़के का एक लड़की के साथ बात करना अच्छा नहीं लगा, यानी कि वे आज भी मध्यकालीन युग में जी रहे हैं, इसीलिए तो बच्चों के मां-बाप को स्कूल में बुला लिया गया यह हिदायत देने के लिए कि वे अपने बच्चों पर नियंत्रण रखें। मासूम बच्चों को लगा कि उन्होंने एक दूसरे से बात करके महान पाप किया है और जाकर जान दे दी।
आठवीं में पढऩे वाली बच्ची को प्रेम की कितनी समझ हो सकती है, इसे समझने के लिए मैं खुद अपनी बेटी का उदाहरण देना चाहूंगा। मेरी बेटी सातवीं में पढ़ती है, यानी कि पारुल से करीब एक साल छोटी। पिछले दिनों मैं अपनी बेटी के दांतों का इलाज करवाने उसे अस्पताल ले गया। अस्पताल में एक होर्डिंग देखकर मेरी बेटी ने सवाल किया, पापा कंडोम क्या होता है? मैंने सवाल को टाल दिया, लेकिन जब बार-बार मेरी बेटी यही सवाल पूछने लगी तो मैंने कहा, बड़ी होकर तुम्हारी समझ में आ जाएगा। सातवीं में पढऩे वाली बच्ची को जब कंडोम के बारे में जानकारी नहीं तो भला आठवीं की छात्रा बेशक वह मेरी बेटी की तुलना भी बहुत ज्यादा खुले वातावरण में क्यों न रहती हो, यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह प्रेम को इतनी गहराई तक समझने लगे कि प्रेमी के साथ आत्महत्या कर ले।
पारुल और विक्की की आत्महत्या पूरे समाज के लिए एक बड़ा संदेश है। यह अभिभावकों और स्कूलों के लिए मंथन का मौका देती है, क्या वास्तव में स्कूलों को बच्चों के प्रति इतना संवेदनहीन होना चाहिए कि दो बच्चे आपसे में बात कर रहे हों तो उसे इतना बड़ा हौव्वा बनाएं कि मां-बाप को बुलाकर बच्चों को अपराधी साबित करें और मां-बाप को भी ऐसे मामलों में बेहद संवेदनशीलता से काम करना होगा।
आज के दौर में जबकि समाजवादी विचारक को-एजुकेशन की जरूरत पर बल दे रहे हैं, ताकि लड़के और लड़कियां एक-दूसरे को जान सकें, ऐसी स्थिति में एक स्कूल द्वारा दो बच्चों के आपस में बातचीत करने के मामले को इस हद तक पहुंचाना कि वे गाड़ी के आगे कूदने के लिए विवश हो जाएं आखिर किस मानसिकता का सबूत है। दो मासूमों की जिन्दगी छीनने के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। छोटी सी उम्र में अपनी जीवन लीला को इतनी वीभत्स तरीके से समाप्त करने वाले दोनों मासूमों को मेरी अश्रुपूरित श्रद्धांजलि। और बाकी बच्चों के लिए यह संदेश कि जीवन अनमोल है, इसे इस तरह से नहीं खोया करते। जीवन जीने के लिए है। प्रेम और दोस्ती अपराध की श्रेणी में नहीं आते। ये ईश्वर की मनुष्य को दी हुई एक स्वर्गिक अनुभूति है। इसे अनुभव करने के लिए जीना होगा। हमें जिन्दगी इसलिए नहीं मिली है कि हम अपने हाथों उसे समाप्त कर दें। जीवन है तो प्रेम है। जो लोग प्रेम का विरोध करते हैं, वे दरअसल या तो वैचारिक और भावनात्मक रूप से शून्य होते हैं या फिर कुंठित होते हैं।
Monday, January 10, 2011
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- त्रिलोचन भट्ट
- बसुकेदार रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड, India
- रुद्रप्रयाग जिला के बसुकेदार गाँव में श्री जनानन्द भट्ट और श्रीमती शांता देवी के घर पैदा हुआ। पला-बढ़ा; पढ़ा-लिखा और २४साल के अध्धयन व् अनुभव को लेकर दिल्ली आ गया। और दिल्ली से फरीदाबाद। पिछले १६ साल से इसी शहर में हूँ। यानी की जवानी का सबसे बेशकीमती समय इस शहर को समर्पित कर दिया, लेकिन ख़ुद पत्थर के इस शहर से मुझे कुछ नही मिला.
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