Saturday, December 18, 2010

जब भी मैंने आत्महत्या की

मैंने सुना है कि अपनी जिन्दगी में हर व्यक्ति एक न ए क बार आत्महत्या करने की जरूर सोचता है। वे समझदार लोग होते हैं जो ए क ही बार सोचते हैं और लगे हाथ कर भी लेते हैं, ले किन कुछ ऐसे होते हैं कि कई बार सोचते हैं, ले किन करते ए क बार भी नहीं। मैंने यह बात कई बार सोची और हर बार मैं किसी न किसी वजह से आत्महत्या यानी सुसाइड करने का प्रोग्राम कैंसिल करता रहा। जब भी मैं आत्महत्या करने का प्रोग्राम बनाता, कोई न कोई जरूरी काम सामने आ जाता। बचपन के दिनों में कभी स् कूल का होमवर्क पूरा नहीं हो पाता तो कभी बहन के ससुराल जाना पड़ जाता। बाद के दिनों में हर बार उस बेवफा प्रेमि का के इंतजार में आत्महत्या करने का प्रोग्राम कैंसिल करता रहा, जो आज त क नहीं आई हालां कि अब उस के आने की कोई संभावना नहीं, क्योंकि नाती-पोतों को छोड़ कर कोई महिला पुराने प्रेमी से मिलने आ जाएगी, ऐसा अब से पहले कभी नहीं हुआ तो अब क्यों होगा। कई बार तो ऐसा भी हुआ कि कोई जरूरी काम न होने के बावजूद भी मुझे आत्महत्या करने का प्रोग्राम कैंसिल करना पड़ा, कारण कि मैं ऐन वक्त पर यह तय नहीं कर पाता था कि आत्महत्या किस तरी के से की जाए।
आमतौर पर फरीदाबाद के मामूली मजदूर से ले कर पंजाब के निलंबित पुलिस अधि कारी और बिहार के चारा घोटाले के आरोपी तक, रेल से कटकर आत्महत्या करते हैं, लेकिन जैसे कि आप सभी को मालूम है, मेरे जिले, यानी सुदूर रुद्रप्रयाग जिले में रेल से कटकर आत्महत्या करने की परंपरा नहीं है। इसका एक कारण यह भी है कि इस पहाड़ी जिले में अभी तक रेल पहुंची ही नहीं है और न ही निकट भविष्य में पहुंचने की कोई उम्मीद है। अब सुना है कि ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक रेल की लाइन बनने वाली है। वैसे इस रेल लाइन के लिए काफी पहले भी बात चली थी और तत्कालीन रेल राज्य मंत्री ने इसके सर्वेक्षण का शिलान्यास भी करवाया था, वैसे सर्वेक्षण का शिलान्यास ही अपने आप में अनोखा कार्यक्रम रहा होगा। खैर काफी साल बाद एक बार फिर से पहाड़ में रेल की बात हो रही है। पिछले रेल बजट में इस लाइन के लिए कुछ पैसा देने का प्रस्ताव था। फिर भी पहाड़ के लोगों को अभी कतई विश्वास नहीं है कि यहां रेल आयेगी, अत: इस बात की भी कोई संभावना नहीं है कि वहां के आत्महत्या करने के इच्छुक लोग इस उम्मीद के साथ फिलहाल आत्महत्या करने का अपना कार्यक्रम टाल देंगे कि रेल आने के बाद ही ऐसा करेंगे।
खैर... फिलहाल मैं अपने बारे में बात कर रहा था। एक बार ऐसा हुआ कि मैंने अपने जिले में आत्महत्या जैसे कार्य के लिए सर्वाधिक सुलभ संसाधन, यानी नदी में कूदकर आत्महत्या करने का कार्यक्रम बना डाला। रात के समय सोने से पहले मैंने दिमाग में पूरा खाका तैयार किया और सुबह सवेरे इसे अमली जामा पहनाने के इरादे से घर से निकल पड़ा।
मेरे घर से नदी करीब तीन किलोमीटर दूर है और रास्ता खेतों से होकर जाता है। सुबह जब घर से निकला तो क्या देखता हूं कि रास्ते के दोनों तरफ खेतों में लहलहाती धान की फसल ओस से पूरी तरह सराबोर है, ऐसे में नदी तक पहुंच पाना संभव नहीं था, क्योंकि नदी तक पहुंचते-पहुंचते कपड़े पूरी तरह से गीले हो जाने की पूरी आशंका थी और इससे सर्दी जुकाम अथवा निमोनिया जैसी बीमारी होने का खतरा हो सकता था।
मेरी आत्महत्या के रास्ते में इस देश का कानून भी बड़ी बाधा बनता रहा है। हमारे यहां आत्महत्या को अपराध की श्रेणी में रखा जाता है। हालांकि कोई आत्महत्या कर ही ले तो बेचारा कानून उसका कर क्या लेगा, लेकिन यदि इस प्रयास में बच निकले तो पुलिस केस दर्ज कर दिया जाता है। हांलांकि बीच में ऐसी भी चर्चा थी कि इस कानून में संशोधन करके लोगों को आत्महत्या करने की स्वतंत्रता दे दी जाएगी, लेकिन यह संशोधन अब पता नहीं कहां उड़ गया, आत्महत्या का प्रयास करने वालों पर अब भी केस दर्ज होता है। कहने का अर्थ यह कि आत्महत्या करना हमारे कानून में अपराध है। मैं इस देश का एक अच्छा नागरिक हूं और एक अच्छा नागरिक होने के नाते भला मैं कैसे कोई अपराध कर लेता? इसके अलावा मैं विशुद्ध नास्तिक किस्म का आदमी हूं, और पुलिस-थाने और कोर्ट-·चहरी जैसी तीर्थों से हमेशा दूर ही रहता रहा हूं। आत्महत्या करने के बाद मुझे इन तीर्थों में भटकना पड़ता तो भला मेरी आत्मा को कितना कष्ट पहुंचता और इस दुख को सहन न कर सकने की स्थिति में मुझे एक बार फिर से आत्महत्या करने पड़ती और एक बार फिर से उन्हीं सब समस्याओं से जूझना पड़ता।
इन सब बाधाओं के बाद एक दिन ऐसा आया कि मैंने शादी कर ली, या यूं कहूं कि घर वालों की ओर से मुझे एक अदद पत्नी सौंप दी गई। जैसा कि सभी जानते हैं, इस तरह के हादसे किसी भी मायने में आत्महत्या से कम नहीं होते। फर्क सिर्फ यह होता है कि आत्महत्या करने में एक ही बार में काम तमाम हो जाता है, यानी एक ही बार में आदमी मर जाता है, लेकिन शादी करने के बार आदमी को रोज मरना पड़ता है और कई बार तो एक ही दिन में कई-कई बार मरना पड़ जाता है। इसके बाद तो आदमी आत्महत्या के दूसरे तरीके इस्तेमाल करने के भी काबिल नहीं रह जाता, क्योंकि ऐसा करने से भावी पीढ़ी पर इसका बुरा असर पड़ सकता है।
वैसे यह व्यंग्य लिखना भी किसी आत्महत्या से कम खतरनाक नहीं है। पहली बात तो यह कि एक अदद व्यंग्य संग्रह छापने के लालच में बड़े-बड़े व्यंग्यकारों की भाषा चुरा-चुराकर यह व्यंग्य तो लिख मारा, लेकिन इस बात की पूरी संभावना बनी हुई है कि किसी दिन कोई अपनी भाषा चुराने या किसी बड़े व्यंग्यकार की भाषा चुराने के मामले में केस दर्ज करवा सकता है। इसके अलावा इस लेख में पत्नी के बारे में की गई टिप्पणी भी खतरनाक साबित हो सकती है और यदि पत्नी ने भूलवश कभी यह व्यंग्य पढ़ लिया तो फिर तो आत्महत्या करने के अलावा कोई दूसरा चारा बाकी रह भी नहीं जाएगा।
वैसे उम्मीद करूंगा कि ऐसा होगा नहीं, बचपन से लेकर अब तक नहीं की आत्महत्या तो अब यह नौबत शायद नहीं आएगी, और आएगी भी तो मुझे पूरा विश्वास है कि ऐन वक्त में आत्महत्या से ज्यादा जरूरी कोई दूसरा काम निकल आएगा।

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बसुकेदार रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड, India
रुद्रप्रयाग जिला के बसुकेदार गाँव में श्री जनानन्द भट्ट और श्रीमती शांता देवी के घर पैदा हुआ। पला-बढ़ा; पढ़ा-लिखा और २४साल के अध्धयन व् अनुभव को लेकर दिल्ली आ गया। और दिल्ली से फरीदाबाद। पिछले १६ साल से इसी शहर में हूँ। यानी की जवानी का सबसे बेशकीमती समय इस शहर को समर्पित कर दिया, लेकिन ख़ुद पत्थर के इस शहर से मुझे कुछ नही मिला.