स्कूल कोलेजों में परीक्षाओ से पहले विदाई पार्टियां होती हैं। ऐसी पार्टियों में आम तौर पर नाचना, गाना और खाना होता है, लेकिन फरीदाबाद के अग्रवाल कालेज की छात्राओ ने ऐसा विदाई समारोह आयोजित किया जिसे वास्तव में एक अच्छी पहल कहा जा सकता है। कला संकाय की छात्राओ ने इस समारोह के लिए हिन्दी प्रद्यापिका सीमा भारद्वाज को संयोजक बनाया। सीमा ने यह समारोह नए तरीके से आयोजित करने की योजना बनाई इसमे नाचना, गाना और खाना शामिल नहीं था। दूसरे संकाय वालों को ये बड़ा अजीव लगा। दरअसल विदाई पार्टी का तो मतलब ही नाचना, गाना होता है। कई छात्राओं ने भी इस तरीके का विरोध किया, लेकिन सीमा ठान चुकी थी। आख़िर कर विदाई समारोह शुरू हुआ। सीमा ने शुरुआत की और फ़िर छात्राओं ने कई मुद्दों पर अपने सीनियरों से सवाल पूछे। इन विषयों में महिला सशक्तिकरण जैसा मुद्दा प्रमुख था। अंत में सीमा ने अपने संबोधन में कहा की जिन्दगी केवल खाना-पीना, नाचना और गाना ही नही है। जब हम आपस में बैठें तो कुछ गंभीर मुद्दों पर भी चर्चा करनी चाहिए और खासकर लड़कियों को। क्योंकि आज महिलायें केवल चौके चूल्हे तक ही सीमित नहीं हैं। इस पार्टी के लिए छात्राओं ने जो बीस हजार रूपये जमा किए थे वे कोलेज के प्रिंसिपल को ये कहकर सौंप दिए की इन पैसों से उन छात्राओं की मदद की जाए जो फीस नहीं भर पाती। छात्राओं ने एक साल में और एक लाख रूपये गरीब छात्राओं की मदद के लिए देने को कहा। सीमा के अनुसार हर छात्रा महीने में इस फंड में दस रूपये जमा करेगी
इस अच्छी पहल के लिए सीमा को साधुवाद।
Sunday, March 29, 2009
Saturday, March 28, 2009
एक परिचय
दोस्तों
इस ब्लॉग को बनाते समय मेरे जेहन में कई बातें हैं। दरअसल लिखने का सिलसिला कई सालों से चल रहा है। लेकिन में हमेशा महसूस करता रहा कि जिन लोगों के लिए मैं लिखता रहा उन तक तो पहुँच ही नहीं पाया। इस ब्लॉग के माध्यम से मैं अपनी बात आप तक पहुंचाने का प्रयास करूंगा। आज बस इतना ही।
धन्यवाद्
इस ब्लॉग को बनाते समय मेरे जेहन में कई बातें हैं। दरअसल लिखने का सिलसिला कई सालों से चल रहा है। लेकिन में हमेशा महसूस करता रहा कि जिन लोगों के लिए मैं लिखता रहा उन तक तो पहुँच ही नहीं पाया। इस ब्लॉग के माध्यम से मैं अपनी बात आप तक पहुंचाने का प्रयास करूंगा। आज बस इतना ही।
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About Me
- त्रिलोचन भट्ट
- बसुकेदार रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड, India
- रुद्रप्रयाग जिला के बसुकेदार गाँव में श्री जनानन्द भट्ट और श्रीमती शांता देवी के घर पैदा हुआ। पला-बढ़ा; पढ़ा-लिखा और २४साल के अध्धयन व् अनुभव को लेकर दिल्ली आ गया। और दिल्ली से फरीदाबाद। पिछले १६ साल से इसी शहर में हूँ। यानी की जवानी का सबसे बेशकीमती समय इस शहर को समर्पित कर दिया, लेकिन ख़ुद पत्थर के इस शहर से मुझे कुछ नही मिला.